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1. कोई अधूरा पूरा नहीं होता
2. सब संख्यक |
कोई अधूरा पूरा नहीं होता
कोई अधूरा पूरा नहीं होता
और एक नया शुरू होकर
नया अधूरा छूट जाता
शुरू से इतने सारे
कि गिने जाने पर भी अधूरे छूट जाते
परंतु इस असमाप्त -
अधूरे से भरे जीवन को
पूरा माना जाए, अधूरा नहीं
कि जीवन को भरपूर जिया गया
इस भरपूर जीवन में
मृत्यु के ठीक पहले भी मैं
एक नई कविता शुरू कर सकता हूँ
मृत्यु के बहुत पहले की कविता की तरह
जीवन की अपनी पहली कविता की तरह
किसी नए अधूरे को अंतिम न माना जाए।
सब संख्यक
लोगों और जगहों में
मैं छूटता रहा
कभी थोड़ा कभी बहुत
और छूटा रहकर
रहा आता रहा.
मैं हृदय में जैसे अपनी ही जेब में
एक इकाई सा मनुष्य
झुकने से जैसे जब से
सिक्का गिर जाता है
हृदय से मनुष्यता गिर जाती है
सिर उठाकर
मैं बहुजातीय नहीं
सब जातीय
बहुसंख्यक नहीं
सब संख्यक होकर
एक मनुष्य
खर्च होना चाहता हूँ
एक मुश्त.
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